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<poem>मुझको कितनी चाह तुम्हारीजब-जब तुझको याद करूँ मैं.हर पल देखूँ राह तुम्हारीतनहा दिल आबाद करूँ मै.
मन करता बंधन है पर चाहत का है गीत सुनाऊँ,और सुनूँ क्यों खुद को आजाद करूँ मैं वाह तुम्हारी.
आहत दिल को कितनी राहततेरी प्रिय भाषा में अपने,देती एक निगाह तुम्हारीभावों का अनुवाद करूँ मैं.
भूल न पाऊँ याद कभी भीसपनों की दुनिया में अक्सर,आह तुम्हारी आह तुम्हारीतुझसे ही संवाद करूँ मैं.
सागर गहरा या तुम गहरेजो चाहूँ वो तू दे देता,कैसे पाऊँ थाह तुम्हारीक्यों कोई फरियाद करूँ मैं. तुझको देख भुला दूँ खुद को,फिर क्या उसके बाद करूँ मैं.
आओ-देखो-जानो मुझको,
कितनी है परवाह तुम्हारी.
</poem>
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