1,321 bytes added,
16:40, 24 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कमलेश द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>फूल लिखें या खार लिखें?
बोलो क्या इस बार लिखें?
तुम बिन जीना मुश्किल है,
क्या खुद को लाचार लिखें?
जीत तुम्हारी चाहें तो,
पर क्या अपनी हार लिखें?
गम में भी जो साथ न दे,
उसको क्यों परिवार लिखें?
नाव डुबोना चाहे वो,
हम उसको पतवार लिखें?
जब हर खिड़की बन्द हुई,
क्यों न उसे दीवार लिखें?
दिन भर दौड़े छुट्टी में,
इसको क्यों इतवार लिखें?
खबरों की न खबर जिसको,
उसको भी अखबार लिखें?
पहले कोई भूल करें,
तब तो भूल-सुधार लिखें.
गलती हो तो हम "माफी",
एक नहीं, सौ बार लिखें.
</poem>