883 bytes added,
17:58, 24 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कमलेश द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>तुम सबसे इजहार न करना.
रिश्तों को अखबार न करना.
माना प्यार है दिल की दौलत,
पर इससे व्यापार न करना.
कर्जे-इश्क चुकाना पूरा,
इसमें कोई उधार न करना.
लेना राय भले ही सबकी,
काम उनके अनुसार न करना.
अपनी ही उँगली कट जाये,
चाकू पर यों धार न करना.
सैलाबों से डर लगता हो,
तो फिर दरिया पार न करना.
</poem>