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|रचनाकार=कमलेश द्विवेदी
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<poem>तू तो अब आदतों में शामिल है.
छोड़ दूँ तुझको ये तो मुश्किल है.

मेरा उठने का मन नहीं करता,
तेरी यादों की ऐसी महफ़िल है.

पार मझधार कर लिया मैंने,
अब तो बस पास में ही साहिल है.

कोई इस दिल को कैसे समझाये,
मानता कब किसी की ये दिल है.

"तेरे काबिल हूँ" ये न जानूँ मैं,
पर तू हर तरह मेरे काबिल है.

हाथ रच मेंहदी या लहू से तू,
जो भी चाहे वो तुझको हासिल है.

साथ वो है तो कौन रोकेगा,
अब तो बस मैं हूँ-मेरी मंज़िल है.
</poem>
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