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19:31, 24 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कमलेश द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatGhazal}}
<poem>मैंने इतना प्यार तुम्हीं से पाया है.
खुशियों का संसार तुम्हीं से पाया है.
मीठा दर्द सुनहरे सपने आज मिले,
ये सब पहली बार तुम्हीं से पाया है.
दिल का कारोबार चलाने की खातिर,
जो कुछ है दरकार तुम्हीं से पाया है.
कहने को तो मैं लिखता हूँ कवितायेँ,
लेकिन यह उपहार तुम्हीं से पाया है.
"कौन है मेरा"दिल से पूछा करता था,
उत्तर आखिकार तुम्हीं से पाया है.
जो कुछ भी पाया है मैंने जीवन में,
मैं हूँ शुक्रगुज़ार,तुम्हीं से पाया है.
</poem>