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19:50, 24 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कमलेश द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatGhazal}}
<poem>रख दुश्मन से यारी रख.
फिर भी कुछ तैयारी रख.
दिल में नरमी रख लेकिन,
तेवर में खुद्दारी रख.
बाहर राख लपेटे रह,
भीतर इक चिन्गारी रख.
हार-जीत की फिक्र न कर,
अपनी लड़ाई जारी रख.
चुप रहना है चुप रह जा,
बात अगर रख भारी रख.
जब तक है इस दुनिया में,
कुछ तो दुनियादारी रख.
</poem>