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पूछे है / कमलेश द्विवेदी

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<poem>रोज़ कितने सवाल पूछे है.
पर न वो मेरा हाल पूछे है.

क्यों न मिलती हो तुम कभी मुझसे,
एक नदिया से ताल पूछे है.

दर्द बिछुड़न का होगा तुमको भी,
टूटे पत्तों से डाल पूछे है.

मेरा महबूब मुझसे अक्सर ही,
क्यों है वो बेमिसाल पूछे है.

जान की फिक्र क्यों नहीं तुझको,
एक मछली से जाल पूछे है.

पूछना तो न चाहे कुछ भी वो,
कुछ न कुछ बहरहाल पूछे है.

खेल में किस तरह वो जीतेगा,
जो कि हर एक चाल पूछे है.
</poem>
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