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03:46, 25 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कमलेश द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatGhazal}}
<poem>थोड़े दिन सँग रहता तो.
वो मुझसे कुछ कहता तो.
मेरे आगे बर्फ़ रहा,
पानी था तो बहता तो.
वो कुंदन बन सकता था,
लेकिन आग में दहता तो.
इतनी जल्दी टूट गया.
बोझ ज़रा सा सहता तो.
जब खुद ही दीवार बना,
तो पहले वो ढहता तो.
मज़िल तक पहुँचाता मैं,
हाथ वो मेरा गहता तो.
</poem>