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|रचनाकार=कमलेश द्विवेदी
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<poem>कभी कुछ पुण्य होता है कभी कुछ पाप होता है.
कराता जो वो करते हम क्या अपने आप होता है.

हमारे दिल में जो आता उसे हम कह दिया करते,
कभी इस बात का हमको न पश्चाताप होता है.

मुहब्बत शब्द है ऐसा न इसकी कोई परिभाषा,
न इसकी कोई भाषा है न इसका माप होता है.

कभी अभिशाप भी होता किसी वरदान के जैसा,
कभी वरदान भी कोई कि ज्यों अभिशाप होता है.

भले ही फेरिये माला सुबह से शाम तक लेकिन,
न जब तक नाम लें दिल से तो क्या वो जाप होता है.
</poem>
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