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04:17, 25 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कमलेश द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatGhazal}}
<poem>ज़मीं पे चाँद को हम यों निहार लेते हैं.
हम अपनी ग़ज़लों में तुमको उतार लेते हैं.
बगैर सोचे हमें दे दो प्यार की दौलत,
चुका ही देते हैं जो भी उधार लेते हैं.
किसी के साथ बिता करके कुछ हसीं लम्हे,
हम अपनी ज़िन्दगी पूरी सँवार लेते हैं.
तुम्हारे बिन तो है मुश्किल गुज़ारना पल भर,
तुम्हारी याद में वर्षों गुज़ार लेते हैं.
हमारी नाव कभी जब भँवर में फँसती है,
तुम्हारे नाम को दिल से पुकार लेते हैं.
</poem>