1,002 bytes added,
04:17, 25 दिसम्बर 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कमलेश द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>थोड़ा-थोड़ा अगर हम जायेंगे.
जायेंगे,सारे शिकवे-गिले जायेंगे.
सोचते हैं कि धीरज धागों से हम,
कब तलक जख़्म दिल के सिले जायेंगे.
आप चाहे न जायें मेरे सँग मगर,
आपकी यादों के काफ़िले जायेंगे.
दूरियाँ-दूरियाँ-दूरियाँ-दूरियाँ,
तोड़िये,टूट ये सिलसिले जायेंगे.
एक ही अर्ज़ है- मुस्कुराते रहें,
मेरे गुलशन के ग़ुल भी खिले जायेंगे.
</poem>