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दिल से साथ रहे / कमलेश द्विवेदी

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<poem>सँग तो हम दिन-रात रहे.
क्या हम दिल से साथ रहे.

मन की बात न कह पाये,
करते कितनी बात रहे.

खुद पर क़ाबू क्या पाते,
बेक़ाबू जज़्बात रहे.

तुम दोषी ना हम दोषी,
दोषी तो हालात रहे.

उम्मीदें थीं मरहम की,
पर मिलते आघात रहे.

अंत भला हो या मालिक,
कैसी भी शुरुआत रहे.

दुख न लगे दुख, जब सुख का
उससे अधिक अनुपात रहे.
</poem>
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