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13:22, 2 जनवरी 2016 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रदीप मिश्र
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<poem>
''' कोचिंग सेन्टर - एक '''
देश के सारे स्कूल नाक़ाबिल सिद्ध हो चुके थे
सिर्फ कोचिंग सेन्टरों पर भरोसा था
मास्टरजी तलाश रहे थे छात्र
और सारे छात्र कोचिंग सेन्टरों में बैठे हुए थे
कहीं कोई गड़बड़ी नहीं हुई थी
किसी को कोई अफ़सोस नहीं था
समय बदल रहा था
प्रतिभा को तौल रहा था
फिसड्डी इंजिनियरिंग पढ़ रहा था
काबिल ईंट ढो रहा था
देश ग्लोबल हो रहा था।
</poem>