Changes

होली-16 / नज़ीर अकबराबादी

489 bytes removed, 08:10, 19 जनवरी 2016
{{KKAnthologyHoli}}
<poem>
बजा लो तब्लो तबलो तरब<ref>ख़ुशी का ढोल</ref> इस्तमाल होली का ।का।हुआ नुमूद<ref>धूमधाम, तड़क-भड़क</ref> में रंगो रंगों जमाल<ref>शोभा, सुन्दरता</ref> होली का ।।का॥भरा सदाओं में, रागो ख़़याल ख़याल होली का ।का।बढ़ा ख़ुशी खु़शी के चमन में निहाल होली का ।।का॥::अज़ब अजब बहार में आया , जमाल होली का ।।१।।का॥1॥
हर तरफ़ तरफ से लगे रंगो रंगों रूप कुछ सजने ।सजने।चमक के हाथों में कुछ तालियाँ तालियां लगी बजने ।।बजने॥किया ज़हूर<ref>रौशन, उज्ज्वल</ref> हँसी और ख़ुशी जहूर हंसी ओर खुशी की सजधज ने ।ने।सितारो ढोलो मृदंग दफ़ लगे बजने ।।बजने॥::धमक के तबले तबलों पै खटके है हैं ताल होली का ।।२।।का॥2॥
जिधर को देखो उधर ऐशो चुहल के खटके ।चुहलके खटके।हैं भीगे रंग से दस्तारो जाम<ref>पगड़ी और चादर</ref> और पटके ।।पटके॥भरे हैं हौज हौज़ कहीं रंग के कहीं मटके ।मटके।कोई ख़ुशी खु़शी से खड़ा थिरके और मटके ।।मटके॥::यह रंग ढंग है रंगी खिसाल<ref>आदत, स्वभाव, आदत</ref> होली का ।।३।।का॥3॥
निशातो ऐश<ref>आनंद और सुख</ref> से चलत चते तमाशे झमकेरे ।झमकेरे।बदन में छिड़कवाँ छिड़कवां जोड़े सुनहरे बहुतेरे ।बहुतेरे॥खड़े हैं रंग लिए कूच औ गली घेरे ।घेरे।पुकारते हैं कि भड़ुआ हो अब जो मुँह फेरे ।मुंह फेरे॥::यह कहके देते हैं झट रंग डाल होली का ।।४।।का॥4॥
ज़रूफ़ जरूफ बादए गुलरंग से चमकते हैं ।हैं।सुराही उछले है हैं और जाम भी छलकते हैं ।।हैं॥नशों के जोश में महबूब भी झमकते हैं ।हैं।इधर अबीर उधर रंग ला छिड़कते हैं ।।हैं॥::उधर लगाते हैं भर-भर गुलाल होली का ।।५।।का॥5॥
जो रंग पड़ने से कपड़ों तईं छिपाते हैं ।हैं।तो उनको दौड़ के अक्सर पकड़ के लाते हैं ।।हैं॥लिपट के उनपे घड़े रंग के झुकाते हैं ।हैं।गुलाल मुँह पे मुंह पै लगा ग़ुलमचा गु़लमचा सुनाते हैं ।।हैं॥::यही है हुक्म अब ऐश इस्तमाल होली का ।।६।।का॥6॥
गुलाल चहरए ख़ूबाँ खू़बां पै यों झमकता है ।है।कि रश्क रश्क़ से गुले-ख़ुर्शीदखुर्शीद<ref>सूरजमुखी का फूल</ref> उसको तकता है ।।उधर अबीर भी अफ़शाँअफ़शा<ref>वह सुनहरा स्त्रियों के बालों अथवा गालों पर छिड़कने का सुनहला या रुपहला रूपहला चूर्ण, जो औरतें बालों पर छिड़कती हैं ।</ref> नमित चमकता है ।है।हरेक के ज़ुल्फ़ जुल्फ़ से रंग इस तरह इसतरह टपकता है ।।है॥::कि जिससे होता है ख़ुश्क खुश्क बाल-बाल होली का ।।७।।का॥7॥
कहीं तो रंग छिड़क कर कहें कि होली है ।है।कोई ख़ुशी खुशी से ललक कर कहें कि होली है ।है॥अबीर फेंकें हैं तक कर कहें की कि होली है ।है।गुलाल मलके लपक कर कहें कि होली है ।है॥::हरेक तरफ़ तरफ से है यह कुछ इत्तिसाल<ref>मेल-मिलाप</ref> होली का ।।८।।का॥8॥
यह हुस्न होली के रंगीन अदाए मलियाँ हैं ।मलियां है।जो गालियाँ गलियां हैं तो मिश्री की वह भी डलियाँ हैं ।।डलियां हैं॥चमन हैं कूचाँ कूंचा सभी सहनो बाग गलियाँ हैं ।गलियां हैं।तरब<ref>आनन्द</ref> है ऐश है, चुहलें हैं , रंगरलियाँ हैं ।।रंग रलियां हैं॥::अजब 'नज़ीर' ”नज़ीर“ है फ़रखु़न्दाफ़रख़ुन्दा<ref>ख़ुशी खुशी का</ref> हाल होली का ।।९।।का॥9॥
</poem>
{{KKMeaning}}