881 bytes added,
16:17, 23 जनवरी 2016 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मनोज पुरोहित ‘अनंत’
|संग्रह= मंडाण / नीरज दइया
}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
होठां सूं निकळ
कानां तांई पूगी
कानां रै बाद
कठै गमगी कविता!
निरा सबद नीं है
म्हारी कविता
भीतर री लाय है
बळत है बरसां री
हाय है
मजूरां री-करसां री।
सोनल सुपना
रमै सबदां में
सबद उचारै राग
सुळगावै आग
जद रचीजै-कथीजै
कोई कविता
आव कविता बांच
मिलसी वा ई आंच ।
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader