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अपने तड़पने की / मीर तक़ी 'मीर'
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14:57, 6 अगस्त 2008
तब फ़िक्र मैं करूँगा ज़ख़्मों को भी रफू का<br><br>
यह
एैश
ऐश
के नहीं हैं
याँ
या
रंग और कुछ है<br>
हर गुल है इस चमन में साग़र भरा लहू का<br><br>
बुलबुल ग़ज़ल सराई, आगे हमारे मत कर<br>
सब हमसे सीखते हैं, अंदाज़ गुफ़्तगू का
Pratishtha
KKSahayogi,
प्रशासक
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प्रबंधक
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