गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
निरवाही / प्रेमघन
No change in size
,
06:37, 30 जनवरी 2016
<poem>
होत निरौनी जबै धान के खेतन माहीं।
अवलि निम्न
जातिय
जातीय
जुबति जन जुरि जहँ जाहीं॥
खेतन में जल भरयो शस्य उठि ऊपर लहरत।
चारहुँ ओरन हरियारी ही की छबि छहरत॥
Dkspoet
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits