गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
मंगल प्रातहि उठे / प्रेमघन
876 bytes added
,
10:16, 30 जनवरी 2016
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
|संग्रह=युगमंगलस्तोत्र / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मंगल प्रातहिं उठे दोऊ कुंजनि तैं आवत।
मंगल तान रसाल सुमंगल वेनु बजावत॥
मंगलमय अनुराग भरी हरि वचन बतावत।
मंगल प्यारी विहँसि श्याम को चित्त चुरावत॥
मंगल गलबाहीं दिये दोउ दुहून लखि मोहते।
बद्री नारायन जू खरे मंगलमय छवि जोहते॥
</poem>
Dkspoet
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits