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प्रार्थना - 12 / प्रेमघन
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06:22, 3 फ़रवरी 2016
दीन गुनी सज्जनों में निपट विनीत बने,
::प्रेमघन नित नाते नेह के निबाहिये।
राग रोष औरों से न हानि लाभ कुछ उसी
,
::नन्द के किसोर की कृपा की कोर चाहिए॥
</poem>
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