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फिर जल गया रावण / मनोज चौहान

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फिर जल गया है रावण
हर बार की तरह
फूटते पटाखों के शोर
और तालियों की
गड़गड़ाहट के बीच l

बहन के अपमान का
प्रतिशोध लेने को
जो कर बैठा दुसाहस
माता सीता के हरण का
मगर मर्यादित रहा
फिर भी
कायम रह पाई थी
वैदेही की पवित्रता l

लेकिन क्या सच में
इतना क्रूर था वह
जितने निर्मम
और विकृत मानसिकता के
गुलाम हैं ये
कलयुगी रावण l

मासूम बच्चियों को नोचते
तो कभी निर्दोष और अबोध
बचपन को
पेट्रोल छिड़ककर
आग लगा देने वाले
आततायी
या फिर मनुष्य रूप में
भूलवश जन्मे पशु ?

उदंड और अभिमानी
उस रावण का
अंत तो हो गया था
बहुत पहले
दंड स्वरुप
मगर कब अवतरित होंगे
इन कलयुगी रावणों को
संहारने वाले राम ?
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