781 bytes added,
16:09, 7 मई 2016 .{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=चाँद हादियाबादी
}}
[[Category:गज़ल]]
<poem>
जिसने मुँह मे ज़बान रखी है
उसने अपनी ही ठान रखी है
यह तो जाएगी जाते-जाते ही
क्यों हथेली पे जान रखी है
साथ जिसने दिया है हर पल-छिन
उसने ही आन-बान रखी है
रोज़ मरतें हैं रोज़ जीते हैं
रौनके-दो जहान रखी है
ऐ फ़लक तू खुला है ख़ाली है
चाँद तारों ने शान रखी है