1,062 bytes added,
21:52, 22 मई 2016 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=धीरेन्द्र
|संग्रह=करूणा भरल ई गीत हम्मर / धीरेन्द्र
}}
{{KKCatGeet}}
{{KKCatMaithiliRachna}}
<poem>
आएल मास हेमन्त आ कि गाम पड़ि गेल मोन यौ।
करू की हम नहि फुरै अछि, अछि उपाये कोन यौ।
कतहु कटनी, कतहु झटनी, कतहु दौनिक सोर यौ।
नीड़-हीन विहंग जेकाँ आँखि पूरित नोर यौ।
अरे ! आएल मास हेमन्त
मोनक विहग उड़ल अकाशमे,
दूर अछि जइ भूमिसँ ओ
तकर ताकक आशमे।
परिस्थितिकेर बोध होइतहि मोन भए गेल घोर यौ।
दूर भए गेल हमर हेतुक अपन जननीक कोर यौ।
</poem>