माँगुगा द्रव्य वहाँ जाके |
अंग व अंग मिलाकर नैनन, नैनन से प्रभु नीर बहाये।
नेह निबाहन हार प्रभो अति स्नेह सुधामय बोल सुनाये।
प्रभु मिले गले से गला लगा,
चरणोदक लीनो धो-धोकर |
बोले प्रेम भरी वाणी,
पूछि हरि बतियाँ रो-रोकर |
निज आसन पे बैठा करके,
सब सामग्री कर में लीनी |
चित्त प्रसन्नता से कृष्णचन्द्र,
विविध भांति पूजा कीनी |
बोले न मिले अब तक न सखा,
तुम रहे कहाँ सुध भूल गये |
आनन्द से क्षेम कुशल पूछी,
प्रभु प्रेम हिंडोले झूल गये |
रुक्मणि स्वयं सखियाँ मिलकर,
सब प्रेम से पूजन करती थी |
स्नान करने को उनको,
निज हाथों पानी भरती थी |
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