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{{KKRachna
|रचनाकार=महमूद दरवेश|अनुवादक=अनिल जनविजय|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>तुम मुझे चारों तरफ़ से बांध बाँध दो
छीन लो मेरी पुस्तकें और चुरूट
मेरा मुँह धूल से भर दो
कविता मेरे धड़कते हृदय का रक्त है
मेरी रोटी का खारापन
मेरी आँखों का तरलता
यह लिखी जाएगी नाख़ूनों से
आँखॊं के कोटरों से, छुरों से
मैं इसे गाऊंगागाऊँगा
अपनी क़ैद-कोठरी में, स्नानघर में
अस्तबल में, चाबुक के नीचे
हथकड़ियों के बीच, जंज़ीरों ज़ंजीरों में फँसा हुआ
लाखों बुलबुलें मेरे भीतर हैं
मैं गाऊँगा
गाऊँगा मैं
अपने संघर्ष के गीत
मैं गाऊंगा'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय''' गाऊंगा मैं अपने संघर्ष के गीत</poem>