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खाई है क़सम साथ निभाने की हमेशा
हम आज सरेआम ये ऐलान एलान करेंगे
इज़्ज़त हो बुज़ुर्गों की तो बच्चों को मिले से रहे नेहइक दूजे हर एक के माँ-बाप का सम्मान करेंगे
हम त्याग, सदाचार, भरोसे की मदद से
जीना है हक़ीक़त के धरातल पे ये जीवन
सपनोँ से नहीं न हम ख़ुद को परेशान करेंगे
जन्नत को उतारेंगे यही मंत्र ज़मीं पर
सब मिल के 'रक़ीब' इनका जो गुणगान करेंगे
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