Changes

<poem>
जिस्मे खाक़ी ख़ाकी में क्या बला है वो
है कोई चीज़ या हवा है वो
अजनबी है मगर मिला ऐसेख़ुद को तुम मेरी कायनात कहोजैसे मुद्दत से जानता है वोदिल को जो छूले ऐसी बात कहो
कौन जानेगा इश्क़ से बढ़करआज मौसम की पहली बारिश में"हुस्न कहते हैं जिसको क्या है वो"तन्हा कैसे कटेगी रात कहो
डोर आँखों पास बैठो कभी तो पहलू में वो गुलाबी सीजैसे चढ़ता हुआ नशा है वोकुछ हमारी कुछ अपनी बात कहो
मंज़िले इश्क़ पार करने कोजान जोखिम में डालता है आज वोबेनक़ाब निकले हैंआज की रात चाँद रात कहो
हो गया होगा रो के दिल में चाहत जुबाँ पे कड़वी बातहल्काहुस्न वालों की इक अदा है वोग़म से क्या मिल गयी नजात कहो
बेवफ़ा कह दिया ज़िन्दगी में कहाँ सुकूने-दिल मौत को राहते-हयात कहो ख़ाक हासिद हुआ है जल के 'रक़ीब' जिसेजान लें आप बावफ़ा किसने खाई है वोकिससे मात कहो
</poem>
384
edits