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स्त्रियाँ / आभा बोधिसत्त्व

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स्त्रियां स्त्रियाँ घरों में रह कर बदल रही हैं
पदवियां पदवियाँ पीढी दर पीढी स्त्रियां स्त्रियाँ बना रही हैं
उस्ताद फिर गुरु, अपने ही दो-चार बुझे-अनबुझे
सदियों से सह रही हैं मान-अपमान घर और बाहर.
स्त्रियां स्त्रियाँ बढा रही हैं मर्यादा कुल की ख़ुद अपनी ही
मर्यादा खोकर,
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