801 bytes added,
16:43, 20 अगस्त 2016 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
|संग्रह=प्रेम पीयूष / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
}}
{{KKCatBrajBhashaRachna}}
<poem>
दुरे दृग घूंघट की पट ओट सों, चोट कियो करैं लाखन धूल।
लिये जुग भौंहन की घन प्रेम, दिखाय रहे तरवार अतूल॥
भला मतवारे महा जुलमीन, नवीन उपद्रव के नित मूल।
तिन्हैं धनु अंजन रेख में हाय, दई दै दई वरुनी सत सूल॥
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader