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{{KKRachna
| रचनाकार= दीपक शर्मा 'दीप'
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मुट्ठी में दो-चार नहीं
कोई तेरा यार नहीं

यूँ ही गले लगाएगा
ऐसा तो संसार नहीं

सच्ची बातें लिखता हो
कोई भी अखबार नहीं

कहता हूँ सो करता हूँ
भाई ! मैं सरकार नहीं

अपनी राह बनाओ ख़ुद
यूँ तो,बेड़ा पार नहीं

पूछ-पूछ कर मारेंगे
कहो दो मैं बीमार नहीं

चलो तवायफ़ ग़ाफ़िल है
हम तो इज़्ज़तदार नहीं

माना कि बेकार हैं 'दीप'
इतने भी बेकार नहीं I
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