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13:19, 17 सितम्बर 2016 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रखर मालवीय 'कान्हा'
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
मैं न सोया रात सारी, तुम कहो
बिन मेरे कैसे गुज़ारी, तुम कहो
हिज्र आंसू दर्द आहें शायरी
ये तो बातें थीं हमारी, तुम कहो
हाल मत पूछो मेरा, ये हाल है
जिस्म अपना, जां उधारी, तुम कहो
रख दो बस मेरे लबों पे उंगलियां
मैं सुनूंगा रात सारी, तुम कहो
फिर कभी अपनी सुनाऊंगा तुम्हें
आज सुननी है तुम्हारी,तुम कहो
रोक लो “कान्हा” उसे, जाता है वो
वो नहीं सुनता हमारी, तुम कहो
</poem>