Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रखर मालवीय 'कान्हा' |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रखर मालवीय 'कान्हा'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
मैं भी गुम माज़ी में था
दरिया भी जल्दी में था

एक बला का शोरो-गुल
मेरी ख़ामोशी में था

भर आयीं उसकी आँखें
फिर दरिया कश्ती में था

एक ही मौसम तारी क्यों
दिल की फुलवारी में था?

सहरा सहरा भटका मैं
वो दिल की बस्ती में था

लम्हा लम्हा ख़ाक हुआ
मैं भी कब जल्दी में था?
</poem>