Changes

<poem>
ज़िन्दगी ख़राब हो गई
और बे-हिसाब हो गई I
ख़ार-ख़ार हो गयी थी मैं यकबयक गुलाब हो गई ?
ज़ुल्फ़ की घटा खुली अभी
हाय , महताब हो गई I
देखते ही खो गया , उसे इस क़दर शराब हो गई I
दोसतों दोस्तों की बात मान ली साँस भी अज़ाब हो गई I
कल तलक दबी-दबी रही आज इन्कलाब हो गई I
शाईरों ने टांक दी चुनर
शाईरी , शबाब हो गई I
बा-शऊर दिल निकालती माहरू , कसाब हो गई I
‘दीप’ यूँ जगा दिया गया
ख़ाब ख़ाब ख़ाब हो गई I
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