Changes

|सारणी=ईशावास्य उपनिषद / मृदुल कीर्ती
}}
 
<span class="upnishad_mantra">
यस्तु सर्वाणि भूतान्यात्मनेवानुपश्यति।<br>
सर्वभूतेषु चात्मानं ततो न विजुगुप्सते ॥६॥<br>
</span>
<span class="mantra_translation">
सर्वत्र दर्शन परम प्रभु का, फिर सहज संभाव्य है,<br>
अथ स्नेह पथ से परम प्रभु, प्रति प्राणी में प्राप्तव्य है॥ [६]<br><br>
</span>
 
<span class="upnishad_mantra">
:::यस्मिन्सर्वाणि भूतानि आत्मैवाभूद विजानतः।<br>
:::तत्र को मोहः कः शोकः एकत्वमनुपश्यतः ॥७॥<br>
</span>
:::फिर शोक मोह विकार मन के शेष उसके विशेष हों,<br>
:::एकमेव हो उसे ब्रह्म दर्शन, शेष दृश्य निःशेष हों॥ [७] <br><br>
</span>
 
<span class="upnishad_mantra">
स पर्यगाच्छक्रमकायव्रणम स्नाविर शुद्धमपापविद्धम।<br>
कविर्मनीषी परिभुः स्वयंभूर्याथातत्थ्यतो र्थान व्यदधाच्छाश्वतीभ्यहः समाभ्यः ॥८॥<br>
</span>
उसको सुलभ, जिसे ब्रह्म प्रति प्रति प्राणी में साकार है॥ [८]<br><br>
</span>
<span class="upnishad_mantra">:::अन्धं तमः प्रविशन्ति ये विद्यामुपासते।<br>:::ततो भूय इव ते तमो य उ विद्याया रताः ॥९॥<br></span>
<span class="mantra_translation">
:::अभ्यर्थना करते अविद्या की, जो वे घन तिमिर में,<br>
:::और वे तो जो कि ज्ञान के, मिथ्याभिमान में मत्त हैं,<br>
:::हैं निम्न उनसे जो अविद्या, मद के तम उन्मत्त हैं॥ [९]<br><br>
</span>
 
<span class="upnishad_mantra">
अन्यदेवाहुर्विद्यया न्यदेवाहुर्विद्यया।<br>
इति शुश्रुम धीराणां ये नस्तद्विचचक्षिरे ॥१०॥<br>
</span>