}}
{{KKCatKavita}}
<poem>बाधाएँ आती हैं आएँ<br>घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,<br>पावों के नीचे अंगारे,<br>सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,<br>निज हाथों में हँसते-हँसते,<br>आग लगाकर जलना होगा।<br>क़दम मिलाकर चलना होगा।<br><br>
हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,<br>अगर असंख्यक बलिदानों में,<br>उद्यानों में, वीरानों में,<br>अपमानों में, सम्मानों में,<br>उन्नत मस्तक, उभरा सीना,<br>पीड़ाओं में पलना होगा।<br>क़दम मिलाकर चलना होगा।<br><br>
उजियारे में, अंधकार में,<br>कल कहार में, बीच धार में,<br>घोर घृणा में, पूत प्यार में,<br>क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,<br>जीवन के शत-शत आकर्षक,<br>अरमानों को ढलना होगा।<br>क़दम मिलाकर चलना होगा।<br><br>
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,<br>प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,<br>सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,<br>असफल, सफल समान मनोरथ,<br>सब कुछ देकर कुछ न मांगते,<br>पावस बनकर ढ़लना होगा।<br>क़दम मिलाकर चलना होगा।<br><br>
कुछ काँटों से सज्जित जीवन,<br>प्रखर प्यार से वंचित यौवन,<br>नीरवता से मुखरित मधुबन,<br>परहित अर्पित अपना तन-मन,<br>जीवन को शत-शत आहुति में,<br>जलना होगा, गलना होगा।<br>क़दम मिलाकर चलना होगा।<br><br/poem>