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कहो सुनयने किसे दिखायें अंतस के अनगिन आघात।
किसके राम दुवारे जायें लेकर दर्दों की बारात।

धीरज विचलित लगे निरंतर
संयम टूटे बारम्बार,
अभिलाषाओं से अभिसिंचित
झुलस रहा सुरभित संसार।

नेह की संचित निधि चुरा ली
भ्रम की आवाजाही ने,
आशा के अवशेष मिटा दी
वक्त की एक गवाही ने।

विषम परिस्थितियों में निर्मम छोड़ गए सब अपने साथ।
कहो सुनयने किसे दिखायें अंतस के अनगिन आघात।

परछाई हरकर निर्मोही
अंधियारे ने समझाया,
नाता नहीं किसी से स्थिर
पगले नर क्यों तू भरमाया।

इसीलिए केवल सूनापन
अब अंतर्मन को भाता,
बिना रिक्तता सचमुच कोई
पूर्ण कहाँ फ़िर हो पाता।

अवचेतन सी हुई दशा सहते पीड़ा के वज्रापात।
कहो सुनयने किसे दिखायें अंतस के अनगिन आघात।

हाड़ मास के इस पिंजर का
क्षण भंगुर लौकिक संसार,
नित्यानंद स्वरुप प्रेम का
निश्छल मन उत्तम आधार।

यह चिंतन थोड़े में तुमको
यदि ह्रदय से भाये,
जहां भी हो आओ स्वर देकर
कीर्तन सा हम गायें।

इससे अधिक बताओ जीवन कैसे भला निभाएं साथ।
कहो सुनयने किसे दिखायें अंतस के अनगिन आघात।
किसके रामदुवारे जाएँ लेकर दर्दों की बारात।
</poem>
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