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झन लगाव आगी / चेतन भारती

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निच्चट परबुधिया झन जानव,
गवई-गांव अब जागत हे।
कुदारी बेंठ म उचका के कुदाही,
छाये उसनिंदा अब भागत हे।।

जांगर टोरे म बोहाथे पसीना,
जाके भुइयां तब हरियाथे
चटके पेट जब खावा बनथे,
चिरहा पटका लाज बचाथे ।।
स्वारथ ल चपके पंवरी म,
ढेलवानी रचत, करनी तोर जानत हे ।
मोर गंवई गांव...

जन –जन के पीरा हरके ओमन,
सुख के नवा फर लाये बर ठाने हे ।
जिन्गी के दर्रा म धंदाये दंदरत,
सबके छइहां बन मन बांटे हे ।।
टांग के घाम ल ओमन खुंटी में,
झांझ में उसनावत, बुता बनाये आवत हे ।
मोर गंवई गांव....

सागर सही ओ चुप-चुप रहिथे,
झन समझव उंकर कमजोरी ये ।
कभू बड़ोरा बनके जुरियाये आहीं,
तब झन कहिहव अंगरा उंकर बोली ये ।।
सेंध फोरइया, फोन पार बनइया,
देखत मने मन, ओ पहिचानत हे ।
मोर गंवई गांव...

छाती चीरे हनुमान रही ओमन,
धरती फोर के रामधन उपजावत हे ।
रावण बनके कतको गरजब,
मिहनत के अंगद बन आवत हे ।।
झन लगाव आगी ये भुइया मं,
सबो जर जाही, येला वो जानत हे ।
मोर गंवई गांव...
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