गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
मोर संग चलव रे / लक्ष्मण मस्तुरिया
1,303 bytes added
,
18:21, 28 अक्टूबर 2016
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लक्ष्मण मस्तुरिया |संग्रह= }} {{KKCatGeet}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लक्ष्मण मस्तुरिया
|संग्रह=
}}
{{KKCatGeet}}
{{KKCatChhattisgarhiRachna}}
<poem>
ओ गिरे थके हपटे मन
अऊ परे डरे मनखे मन
मोर संग चलव रे
अमरैया कस जुड छांव मै
मोर संग बईठ जुडालव
पानी पिलव मै सागर अव
दुःख पीरा बिसरालव
नवा जोत लव नव गाँव बर
रस्ता नवा गढव रे
मोर संग चलव रे
मै लहरी अव
मोर लहर मा
फरव फूलो हरियावअ
महानदी मै अरपा पैरी
तन मन धो हरियालव
कहाँ जाहु बड दूर हे गँगा
मोर संग चलव रे
दीपक संग जूझे बर भाई
मै बाना बांधे हव
सरग ला पृथ्वी मा ला देहूं
प्रण अइसन ठाने हव
मोर सिमट के सरग निसइनी
जुर मिल सबव चढ़व रे
मोर संग चलव रे
</poem>
Dkspoet
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits