Changes

खण्ड-2 / आलाप संलाप / अमरेन्द्र

1 byte removed, 10:00, 25 दिसम्बर 2016
ऐसी कौन व्यथा है तुम पर, लगते थके-थके से
क्या वसन्त में देख लिया है क्रुद्ध शिशिर का सपना
क्यों विराग का रूप लिए यह घूम रहे हो अपना ?"
</poem>
Mover, Protect, Reupload, Uploader
6,574
edits