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अनुगूँज / डी. एम. मिश्र
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08:55, 1 जनवरी 2017
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<poem>
धमाका होता है तो
अनुगूँज कई स्वरों में
बाहर होती है
एकः
दुश्मन की धुलाई
दोः
राजनीतिक लड़ाई
बदले की कार्रवाई
तीनः
परदे में सच्चाई
चोर-चोर, मौसेरे भाई
जाति -धर्म- स्वार्थ
और ख़तरनाक वज़हें
क्या -क्या चीज़ें
प्रयेाग में आयीं
तुला की जगह
घटिया पैमाना
मापदण्ड की बात करता है
वेा कब का
देखना छोड़ चुका है
जो रोशनी का
सवाल उठाता है
जो अपने एक मुट्ठी
फ़ायदे के लिए
पूरी धरती को
बंजर करने पर
आमादा है
ताक़त उसके हाथ में है
जिसकी बस्ती वीरान है
जो बच्चों की किलकारियों
से दूर है
जो बेफ़िक़्र है कि
बाप बच्चे की ज़िद पर
खिलौने लाता है तो
पेट की रोटियाँ काटकर
काश, संवेदनाऍ
नदियों की अँजुरी से निकलतीं
और पहाड़ों के शीर्ष को छूतीं
</poem>
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