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स्वभाव / डी. एम. मिश्र
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10:18, 1 जनवरी 2017
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<poem>
सूर्य को
तपना सुहाये
दरख़्तों को
ठंडा मिजाज
वेा तुम्हारा है स्वभाव
ये हमारा है
नर्म पत्ती
तेज धार
धूप की दाल नहीं गली
सिर उठाकर मुस्कराती
एक नन्हीं-सी कली
एक मूठा सूखा सरपत
सूर्य का
रास्ता रोके खड़ा
जो परायी आग में कूदा
वो सबसे बड़ा
एक तिनका शीर्ष पर
चिलचिलाती धूप में
नदियाँ उबल जातीं
एक छोटा-सा घड़ा
शीतल बना रहता
सूर्य ताकत को दिखाकर
डूब जाता है
एक अन्धेरा भी
पीछे छोड़ जाता है
तब यही नन्हा दिया
संकल्प का
आलोक बन जाता
जब अंधेरों के खिलाफ
रोशनी की जंग होती है
साथ देते हैं पतंगे भी
तब आग से
कोई नहीं डरता
</poem>
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