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युद्धभूमि का सिपाही / डी. एम. मिश्र
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10:28, 1 जनवरी 2017
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<poem>
मैं युद्धभूमि का
सिपाही हॅू
जो नहीं जानता
युद्ध कब तक चलेगा
कब थमेगा
और युद्ध से किसे
क्या मिलेगा
मेरी बन्दूक के पीछे
किसी और की
मंशा गड़गड़ाती है
किसी और का हुक्म
धांय-धांय बोलता है
पूरा देश नाज़ करता है
मेरी शहादत पर
और बदले में
तंगहाल मेरी बीवी
काँपते हाथों से
एक पीतल का मेडल ले लेती है
सरकारी पुरस्कार
और मेरा छोटू
शहीद का बेटा
पेन्शन का हक़दार होकर
पढ़ने लगता है
शौर्य और बलिदान
का अगला पाठ
</poem>
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