गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
अवसरवादी / डी. एम. मिश्र
822 bytes added
,
12:04, 1 जनवरी 2017
{{KKCatKavita}}
<poem>
यह बात
आदमियों पर भी
लागू होती है
टूटने तक
अपनी शाख़ से
जु़दा नहीं होना चाहिए
और मुक्त होने तक
मिट्टी से
नाता नहीं तोड़ना चाहिए
लेकिन, अवसरवादी
रेत के बीच से
निकल गये और
पुजाऊ पत्थर बनकर
आराध्य हो गये
तीव्र ध्वनियों के बीच
कोई गूँगेपन का
फ़ायदा कमा रहा है
और कोई
संस्कारों की आहट में
कान लगाये
बैठा मुँह ताक रहा है
</poem>
Dkspoet
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits