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आज के इस दौर में / डी. एम. मिश्र
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16:51, 1 जनवरी 2017
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आज के इस दौर में
सभ्यता की दौड़ में
ग़ौर से देखें अगर
तहज़ीब की भाषा में तो
कपड़े पहन करके भी
हम नंगे खड़े
धीरे-धीरे गंदगी आयी मगर
पूरा इलाका ले गयी
इज़्जत के साथ
यह हमारे गाँव का तालाब है
नाम केवल बचा है
बाबा का सगरा
पानी नहीं दिखता
तलपटनी सिर उठाये
भरोसे का कुँआ सूखा
दो पीढ़ियों के फासले
सदियों के लगते
बाप अपने
आधुनिक बेटे के आगे
रह के चुप
अपनी समझदारी दिखाता है
जैसे बूढ़ा पेड़ पीपल का
गाँव के बाहर
तन्हा खड़ा तपता
पर्यावरण शुद्ध रखता
पर,इस व्यवस्था में वह
एक लोटा जल नहीं पाता
एक पूरी जिन्दगी
आवरण में
झीना-झीना रेशमी
पर्दा टँगा
अन्दर-अन्दर चाटते दीमक
बाहर-बाहर चल रहा पालिश
</poem>
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