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किसी की आँख से दुनिया हमें अब देखनी पड़ती
नज़़र मद्धिम हुई हर चीज़़ हमको ढूँढनी पड़ती।
बहुत बहला के, फुसला के जिसे रोटी खिलाता था
उसी बेटे से रोटी आज हमको माँगनी पड़ती।
 
यही सबसे बड़ा सच है, यही हम भूल जाते हैं
ये दुनिया छोड़़नी पड़ती, ये दौलत त्यागनी पड़ती।
 
किसी का सिर्फ़़ चेहरा देख करके क्या समझ लेंगे
नज़र भी देखनी पडती, जुबाँ भी तौलनी पड़ती।
 
बुरे दिन आ गये जिसके कभी उस शख़़्स से पूछो
नहीं कटती है फिर भी ज़ि़ंदगानी काटनी पड़ती।
 
कहाँ जाकर तलाशेंगे, कहाँ हैं आपके बेटे
बुढ़ापे में मदद तो हर किसी से माँगनी पड़ती।
</poem>
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