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जहर तुमने अकेले पी लिया ऐसा नहीं होता
बड़ा एहसान मुझ पर कर दिया ऐसा नहीं होता।
इसी को तो मुक़द्दर लोग कहते हैं मेरे भाई
सभी को दे बराबर साक़िया ऐसा नहीं होता।
 
तुम्हीं कमज़ोर निकले हो किसे इल्ज़ाम देते हो
तुम्हारा हक़़ किसी ने ले लिया ऐसा नहीं होता।
 
कभी का कर्ज़़ होगा जो चुकाना पड़ रहा है अब
वो आशिक़ बन गया है शौक़िया ऐसा नहीं होता।
 
ग़ज़ल कहने चले हो तो तग़़ज़्ज़ु़ल भी ज़रूरी है
ग़ज़ल में बस मिला दें क़ाफ़िया ऐसा नहीं होता।
</poem>
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