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मिट्टी का जिस्म है तो ये मिट्टी में मिलेगा
एहसास हॅू मैं कौन मुझे दफ़्न करेगा।
तिरते हैं सफीने जो समंदर में बेख़तर
रहमत न हो उसकी तो कौन पार लगेगा।
 
दुनिया है इक सराय मुसाफिर हैं हम सभी
जाने के बाद कौन किसे याद रखेगा ।
 
कोई तो ख़ुदा है तभी ज़िंदा ग़रीब है
उसके सिवा हमारी मदद कौन करेगा।
 
मासूम परिंदे पे आज तीर चला ले
मालूम है तुझ पर भी कभी तीर चलेगा।
 
पत्थर की लकीरें भी मिटा देते हैं हालात
अश्कों से लिखेगा जो वही हाथ लगेगा।
</poem>
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