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दीप बनकर जलो / डी. एम. मिश्र

No change in size, 16:31, 3 जनवरी 2017
मीत की, शत्रु की भी खुशी के लिए
सूर्य केको, चाँद को पूजते लोग हैं
जो न वश में उसे चाहते लोग हैं
दीप-सा कोई त्यागी, तपस्वी नहीं
काट तम जो जले आरती के लिए
</poem>
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