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|रचनाकार= रामकिशोर दाहिया
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लीकें होती
रहीं पुरानी
सड़कों में तब्दील
नियम-धरम का
पालन कर
हम भटके मीलों-मील

लगीं अर्जियाँ
ख़ारिज लौटीं
द्वार कौन-सा देखें
उलटी गिनती
फ़ाइल पढ़ती
किसके मुँह पर फेंकें

वियाबान का
शेर मारकर
कुत्ते रहे कढ़ील

नज़र बन्द
अपराधी हाथों
इज्जत की रखवाली
बोम मचाती
चौराहों पर
भोगवाद की थाली

मुँह से निकले
स्वर के सम्मन
हमको भी तामील

मल्ल-महाजन
पूँजी ठहरी
दाबें पाँव हुजूर
लदी गरीबी
रेखा ऊपर
अज़ब-अज़ब दस्तूर

स्वाभिमान का
जीना हमको
करने लगा ज़लील


</poem>०००