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“यदि तुम मोर मकान मं आवत, तुम्हर होत नंगत नुकसान!तब बिल्कुल तुम भूल आव झन, मोर ले हरदम दूर भगाव।वर्तमान मं लाभ दिखत कई, सच मं काटत खुद के गोड़।धनवा हा दबात हे तुमला, करत तुम्हर पर अत्याचारसांप दिखब में अति आकर्षक, मगर चाब के लेवत प्राण।”“ए सच ला हम खुद जानत हन-हमर भविष्य कुलुप अंधियारपर मानव हा तुरुत ला देखत, तब मानत धनवा के रोक।गलत राह पर चलत विवश बन, इही मं खावत सुख के जामयदि सुख के कुछ समय मिलय तब, मनसे लेवय निश्चय लाभ।”मंगतू चरवाहा मन चल दिन, करिन गरीबा के अपमानओहर खावत अबड़ घसेटा, तभो ले लेगत आगू पांव।मुड़ी उठा देखिस अकास तन, करिया बादर गहगट छायएक के ऊपर दुसर चढ़त हे, मानो लगे विजय बर शर्त।पानी के बड़े बूंद हा गीरत, तरुत गरीबा अंदर अैसरमझम पानी दड़दड़ा गीरत, जेला कथंय-सुपा के धार।परवा छेद गीस भीतर जल, लिपे भूमि ला कर दिस छेददउड़ गरीबा टपरत टप टप, पर हर ठौर चुहत रेदखेद।सुद्धू कहिथय- “जल अंदर निंग, हमला देत सुघर अक सीख-बिपत के दिन हा निश्चय मिटिहय, अब नइ लगय मंगे बर भीख।बिजली कड़कड़ चमक के बोलत- जइसे होवत दमक अंजोरकष्ट के करिया रात भगाहय, बनिच जहव दलगीर सजोर।”कथय गरीबा-मोर घलो सुन, यदपि भेद नइ प्रकृति पासपर ओकर बनाय दर्शन ला, मानव करथय चरपट नाश।सम बरसा कुचरत हे सब तन, होहय फसल कचाकच धानमगर भिन्नता हवय उपस्थित, वितरण प्रथा मं कई ठक दोष।एकर कारण अइसे होहय- अन्न हा सरही भरे गोदामजेन जिनिस ला मनखे खातिन, ओहर नाश बिगर उपयोग।दूसर डहर किसान श्रमिक मन, कमती आय के दीन गरीबअन्न के बिना भूख मर जाहंय, बेर तभो ले करिया रंग।”“तोर विचार हा हावय उत्तम, पर झलकत निराश के रुपएकर मतलब इही होत हे- सब झन बइठ जांय चुपचाप।खेत कमाय कृषक मन छोड़ंय, महिनत छोड़ भगंय मजदूरदीन आदमी प्राण ला तज दें, जग के जमों बुता रुक जांय?”“वास्तव मं मंय अइसे चाहत- महिनत कर पुरोंय सब कामफल ला पाय के कर लें चिंता, मात्र भाग्य पर झन रहि जांय।वाजिब जगह मांग ला राखंय, विनती करंय बनंय कुछ बण्डतभे उंकर सुख सुविधा मिलिहय, हरदम बर रक्षित अधिकार ”सुद्धू मन मं करत तरकना- कहत सोच गुन जोखू।ग्रहण लइक सिद्धान्त बतावत-मोर पुत्र नइ फोंकू।पाठक मन ले एक निवेदन- आत जात हे क्षण दिन रातबार-बार बस उहि वर्णन मं, कथा व्यर्थ अस लमिया जात।नंगत पानी हा बरसिस तब, टिपटिप डबरा खोंचका खेतअब किसान मन डोली जावत, ब्यासी बर हे सुघ्घर नेत।नांगर बइला धरे गरीबा, ब्यासी करे चलत हे खेतधनवा साथ भेंट हो जाथय, जेकर बरन रकत अस लाल।मेंछा अंइठत-छाती अंड़िया, मोठ असन लउठी के हाथभंव किंजार देखत गरीबा ला, जावत नौकर चाकर साथ।धनसहाय के धन हीरा हा, जोर भुकर के रोपिस पांवबाद गरीबा के धन ऊपर, कूद गीस मारे बर दांव।मगर गरीबा के धन “मोहर” व्यर्थ लड़ई ला टारिस खूब।पर “हीरा” बरपेली झगरत, तंह मोहर तक देवत जोम।पंजा उठा दुनों टकरावत, एक दुसर पर झड़कत सींगपिछू डहर कुछ घुंच पंच घुच्चा, फेर दुचेलत बायबिरिंग।कथय गरीबा हा हगरु ला -“इंकर लड़ई ला बंद करावलड़ई करत यदि टांग टूट गिस, या नाजुक स्थल पर वारएमन घायल-पंगु हो जहंय, कृषि के काम करन नइ पांयऊपर ले हम दवई कराबो, आखिर इंकर अउ हमर हानि।”हगरु हा खेदिस लउठी झड़, इनकर खतम होय तकरारपर धनवा हा छेंक लगा दिस-लड़न देव धन मन ला आज।कुकरा के झगरा देखे हन, पहलवान के देखेन युद्धबइला मन के घलो देख लन, आखिर काकर होवत जीत।”धनसहाय हा जोश देत अब, अपन माल हीरा ला जोर –“मोर शेर, तंय हा झन घबरा, डंटे रहाव युद्ध के क्षेत्र।यदि तंय लड़ई मं विजयी होबे, मोर तोर होहय यश नामतोर ले काम लेवई हा रुकिहय, खाय पिये बर उचित प्रबंध।”बिजली मं पानी पर जावत, फैल जथय सब डहर करेंटजोश शब्द हा आग लगा दिस, लड़त माल मन बन खूंखार।झड़क गरीबा के धन हा अब हीरा के पखुरा ला जमैसदरद में हीरा कुबल बिलबिला, देत बोरक्की भग गिस हार।धनवा हा आन्द उठावत, बेसुध देखत लड़ई के होड़उरभेटटा हो गिस हीरा संग, खुर मं कंस चपकांगे गोड़।निज मालिक पर क्रोध उतारत, खूब हुमेलत बिफड़े मालधनवा हा “हीरा” ला ढकलत, पर अउ धुनत बन महाकाल।धनवा सब ले मदद मांगथय-हीरा हा गुचकेलत तानकउनो दउड़ बचावव मोला, बुझे चहत जीवन के दीप।”भाखा ओरख गरीबा दउड़िस, हीरा हा खेदिस दपकारधनसहाय ला टंच करे बर, सारत देह बिन दवा भेद।चले लइक धनवा होइस तंह, रोष कर कथय मुंह फटकार –“अपन हाथ ला घुंचा गरीबा, मंय नइ चहत तोर उपकार।
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