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<poem>
तोर माल हा बहुत लड़ंका, ओकरेच कारण दर्गति मोरमोर माल हा साऊ सिधवा, तभो ले भोला दीस पधोर।मोर देह भर दरद हा घुमरत, पर तंय मन मं एल्हत खूबघाव के ऊपर नून ला भुरकत, बड़नउकी मारत कंगाल।”कथय गरीबा -“काबर बकथस मोर का गल्ती भैया।मोर प्रशंसा करे के बदला धरथस मैय्या दैय्या।अपन क्रोध मं अपन चुरत हस, मंय बचाय हंव जावत जानहिलमिल जिये-बिपत बांटे बर, आय हवन बन के इंसान।धनवा ओकर बात ला काटिस -“तंय रख बंद अपन उपदेशतोर ले मंय जानबा अनुभवी, मंय खुद बांट सकत हंव ज्ञान।”धनवा रेचेक रेचेक कर रेंगिस, खेत अमर गिस थोरिक बादकाम हा जहां शुंरु हो जथय, धनसहाय हा करथय जांच।ओकर चक के गणना कर लव-ब्यासी होवत हे जे खारनांगर रेंगत सरलग गदबद, एकर बाद चलावत धान-परहा लगत जउन चक मन मं, उहां बहुत अक श्रमिक कमातओकर असलग खातू छीतत, दिखत जंवारा अस सब पेड़।नान नान लइका जेमन हा, खातिन पीतिन करतिन खेलओमन चिखला घुसर कमावत, खटत हवंय बालक मन जेल।चरे केंदुवा घुठुवा तक ले, गोड़ उठाय बर मुस्कुल होतकनिहा नवे – तन पिरावत कंस, पर अराम के पल हा दूर।झंगलू शिक्षक उहें पहुंच गिस, नम्र बनैस अपन व्यवहारधनवा ला सलाह देवत अब, सफल बनाय अपन उद्देश्य –“एक काम धर आय तोर तिर, सुनबे बात रखत हंव आसलइका मन ला काम झन करा, ओमन पावत हें तकलीफ।जीवन शिक्षा बिना अबिरथा, नइ जानंय विकास के बातओमन ला छेल्ला कर छोड़व, ताकि भविष्य हा पाय प्रकाश।”धनवा करखा देख के किहिस -“फोकट ज्ञान इहां झन झाड़।एमन पढ़े बर अगर जांहय, कोन दिही भरपेट अनाज।इंकर ददां मन भूख मरत खुद, कहां खा सकत बांट बिराजखूब तरत खा-अबड़ सोग मर, एमन ला मंय देवत काममोर भरोसा तीन परोसा, इनकर जिनगी पात अराम।”“यदि लइका मन शिक्षिका होहंय, तब कृषि क्षेत्र मं रखिहंय ज्ञानअन्न के उत्पादन पढ़ाय बर, करिहंय खुद नव आविष्कार।उंकर प्रयत्न हा सफल तंहने, अन्न हा उबजिहय भरपूरआखिर मं तुम्हरे घर आहय, एमांमात्र तुम्हर हित – लाभ।”“एक पक्ष भर तंय बताय हस, दूसर ओर मोर हे हानियदि लइका मन शिक्षित होवत, तब बढ़ जहय ज्ञान के क्षेत्र।पूर्ण जगत संग मेल मिलापा, दिहीं अवाज – क्रांति अउ क्रांतिमोर पास वाजिब हक मगिहंय, तुरुत समाप्त मोर वर्चस्व।”धनसहाय हा मुड़ी उठाथय, लइका मन तन डारिस दृष्टिकहिथय -“राख जमे अगनी पर, ओला तंय उड़िया झन फूंक।अगर राख हा उड़के हटिहय, आगू मं बस धधकत आगआगी हा सब जिनिस ला बारत, बर्फ समान करय नइ शांत।मोर भविष्य के सुख हा स्वाहा सब तन घाटच घाटा।तेकर ले मंय होंव सुरक्षित, बाद होय झन धोखा।यदि तंय मोर नफा देखत हस, बालक मन साक्षर झन होंयजग के जमों ज्ञान ले वंचित, मात्र कमांय टोर के देह।”धनवा तर्क ढिलत बेमतलब, सोचत के झंगलू भग जायझंगलू चलिस छोड़ओ तिर ला, काबर पथरा पर मुड़ जाय।ओहिले डहर गीस तंह दिखथय – सनम हा बियासत हें धानओकर खटला झरिहारिन हा, कनिहा नवा करत हे काम।धरे हाथ मं धान के पौधा, दिखत जिंहा पर छटटा ठौरपौधा उहें खोंच देवत फट, ताकि धान हा सघन चलाय।तभे सनम के एक माल हा, बइठ गीस चिखला पर लददतंह झंगलू हा सनम ला कोचकत -“वास्तव मं मनसे मन क्रूर।तोर माल के चलना मुश्किल, काबर लेवत काम बलातबपुरा पशु पर दया मया कर, थोरको झन कर अत्याचार।”सनम के रिस हा नंगत बढ़गिस, अंइठिस खूब बैल के पूंछलउठी ले घलो मरत ढकेलिस, बइला टुडुग हो जथय ठाड़।सनम हा तंहने मया जनावत, सारत हाथ माल के पीठकहिथय – अपन आंख मं देखव – धन हा नइ कोढ़िया असमर्थ।एहर हवय कमऊ फूर्तीला, पर अंड़ जथय पांव ला रोकयदि दूसर बइला मिल जावत, उंकरो साथ अंड़ावत सींग।एहर मोला देत खूब सुख, मोर काम ला करथय पूर्णमगर जहां डायली मं उमड़त, मोरा कर देथय परेशान।”झंगलू गुरु हा हंस के बोलिस -“पहलवान अस हे धन तोरमूड ठीक तब बैठक मारत, वरना सोवत हे दिन रात।”उंकर गोठ सुनथय हठियारिन, झंगलू ला कहिथय कुछ हांस –“गली के ददा ला नइ जानव, पर के निंदा करथय खूब।अपन दोष ला चुमुक लुकाथय, छोड़त काम बहाना मारअगर बहाना हा आवश्यक, जानत एक सौ एक उपाय।”एल्हना सुनत सनम हा भड़किस -“कभू बहाना कोन बनैसतोर अड़े मं देत पलोंदी, मदद करे बर हर क्षण ठाड़।”“तोर बोवई मं हल चलात हस, गंहू ला ओनारत मंय साथ।तंय दौरी ला खेदत तब मंय हा झींकत हंव पैरा।धान के बियासी तंय करथस – तब मंय चालत पौधा।झंगलू हा खुश हो के कहिथय -“तुम्मन हव तारीफ के लैकसुखी गृहस्थ जउन ला कहिथय, ओकर साथ करे हंव भेंट।तुम्मन पहिली खूब लड़त हव, मगर बाद मं होवत एकएक दूसरा के पूरक अव, काम पूर्ण करथव बन एक।”
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